Monday, August 27, 2007

यौन शिक्षा पर इतना बवाल क्‍यों

डॉ0 संजय सिंह, महात्‍मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में समाजकार्य विभाग में रीडर हैं। पढाने के साथ-साथ सामाजिक आन्‍दोलन में आपकी सक्रिय भागीदारी रहती है। पिछले दो महीनों से यौन शिक्षा को लेकर काफी बवाल राज्‍य के अलावा देश भर में मचा हुआ था, और कई राज्‍यों में भारी विरोध के चलते लागू नहीं हो पाया। सबसे चौकाने वाली व महत्‍वपूर्ण देखने वाली जो बात है, शिक्षक संघ यौन शिक्षा के विरोध में खुलकर सामने आया और यहां तक उन्‍होंने इन किताबों को जलाकर अपना विरोध भी दर्ज किया। यौन शिक्षा को लेकर उठे बवाल व शिक्षक से लेकर आम जन मानस के लोगों की मानसिकता को लेकर डॉ0 संजय यहा पर अपनी बात व राय सबके साथ बांट रहे हैं।

यौन शिक्षा को लेकर आम लोगों, धार्मिक नेताओं, राजनेताओं, शिक्षकों एवं राज्य सरकारों में जो भ्रम की स्थिति बनी हुई है या ऐसा कह सकते है कि '' सॉप - छछुंदर'' की स्थिति बनी हुई है। राज्य सरकारें एक कदम आगे बढ़ाती हैं तो दो कदम पीछे खींचती हैं। कोई इसे आवश्‍यक तो कोई अनावश्‍यक बताता है। तो कोई इसे भारत की बिरासत के विरुध्द बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों का अभियान बताता है।
लेकिन वास्तविकता - ''कौवा कान ले गया'' जैसी है।
इसे सम्पूर्ण सन्दर्भ में समझने की कोशिश न कर बिरोध जता कर लोग अपनी पीठ थपथपवाकर भारतीय संस्कृति के रक्षकों की पंक्ति में सम्मिलित होने की थोथी कोशिश कर रहे है । जबकि उनके पास इस बात का कोई जबाब नही है कि एच. आई. वी. / एड्स जैसी बिमारी भ्रमात्मक यौनिकता, लिंगभेद, यौन उत्पीड़न का क्या कारगर उपाय है? क्या मात्र नैतिकता एवं ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ाने से उपरोक्त को रोका जा सकता है? यदि ऐसा होता तो धार्मिक स्थलों पर यौनाचार की घटनाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन घटनाएं होती हैं और उन्हीं द्वारा जो नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं।
यथार्थ यह है कि लोगों में इतना नैतिक बल नहीं बचा कि वे इस विषय को पूरी संवेदनशीलता एवं गंभीरता से पढ़ सके या विद्यार्थियों को पढ़ा सकें। आखिर किसके भरोसे किशोर अथवा युवा यौन शिक्षा ग्रहण करें? नीम - हकीमों के भरोसे, अश्‍लील साहित्यों, अथवा अधकचरी जानकारी रखने वाले साथियों से। क्या यह उपयुक्त होगा? आखिर कब तक हम सच्चाई को नकारते रहेंगे? कब तक यौन एवं यौनिकता को गोपनीय बनाये रखेंगे? क्या यह सत्य नही है कि प्रत्येक मनुष्य जन्म से मृत्युपर्यन्त एक यौनिक प्राणी होता है एवं अपने यौन के आधार पर ही आचरण करता है। प्रत्येक मनुष्य प्रेम, निकटता, लगाव एवं यौनिक उत्तेजना की भावना का अनुभव करने की क्षमता के साथ जन्म लेता है और यह विश्‍वास करता है कि यह योग्यता जीवन भर बनी रहे। लेकिन विभिन्न कारकों जैसे उम्र, लैंगिक भूमिका, लालन-पालन, शिक्षा. सामाजिक पर्यावरण, आत्म -सम्मान, अपेक्षाएं, एवं स्वाथ्य की स्थिति (शारीरिक एवं मानसिक ) के अनुसार हमारी यौनिकता, आवश्‍यकताओं तथा प्रेम को अभिव्यक्त करने के तरीकों में अन्तर होता है। यौनिकता बहुत गहराई से सामाजिक लिंगभेद, सामाजिक लिंगभेद सम्बन्धी व्यवस्था एवं लैंगिक भूमिकाओं से जुड़ी होती हैं। लिंगभेद सम्बन्धी व्यवस्था कितनी समानतावादी अथवा विभेदकारी है, यौनिकता तथा इसकी अभिव्यक्ति की सामाजिक स्वीकृति द्वारा बड़े अच्छे से समझा जा सकता है।
लैंगिकता एवं यौनिकता दोनों ही हमारी पहचान के हिस्से हैं। तथा यह समाज एवं संस्कृति द्वारा निर्मित की जाती है जो कि अभिभावकों, भाई- बहनों, मित्र- समूहों, शिक्षकों, धार्मिक ग्रन्थों एवं अन्य साहित्यों द्वारा सिखाई जाती हैं। प्रश्‍न उठता है सिखाने की पद्वति, विषय वस्तु, एवं उपागम पर । क्या जो यौन शिक्षा परम्परागत रुप से सिखाई जाती है वह उपयुक्त है? क्या वह सभी को उपलब्ध होता है? यह एक व्यापक विष्लेषण का विषय है। यदि वह उपयुक्त होता तो इतनी भारी मात्रा में यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली दवाइयों की विक्री नहीं होती, जगह-जगह गली-मुहल्लों में मर्दाना ताकत बढ़ाना का दावा करने वाली नीम-हकीमों की फौज नहीं खड़ी होती। इतनी मात्रा में युवा दिग्भ्रमित न होते, एच. आई. वी. / एड्स का इतना प्रसार न होता और न ही इतनी मात्रा में यौन उत्पीड़न, बलात्कार एवं यौन हिंसाएँ होती।
अत: हमें स्वीकार करना होगा कि यौन शिक्षा हमारे जीवन की एक अनिवार्यता है। यह तथ्यों की जानकारी मात्र नही है। यह एक संवेदनशील विषय है तथा ऐसे उपागमों द्वारा शिक्षार्थी को शिक्षा दी जाए कि वह विषय को गम्भीरता से समझ सके। शिक्षक को कक्षा का वातावरण इस प्रकार निर्मित करना पड़ेगा कि विद्यार्थी इमानदारी से अपने जीवन जीने के तरीके, यौनिकता एवं प्रेम के अनुभवओं पर खुलकर चर्चा कर सकें । तभी शिक्षक उनके मूल्यो, अभिवृत्तियो एवं व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकेगें । एवं विद्याथी जीवन में स्वस्थ निर्णय लेने योग्य हो सकेगा । इससे उनका आत्म सम्मान भी बढ़ता है क्योकि यौन शिक्षा पहचान एवं मानवता से सम्बंधित है ।
सहभागी उपागमो एवं तकनीकों जैसे वैयक्तिक चर्चा, मूल्य स्पष्टीकरण के खेल, सामाजिक लिंगभेद पर समूह चर्चा, एवं छोटे- छोटे समूहो में अनुभवो का बांटना इत्यादि का प्रयोग कर हम शिक्षण को ग्राहय बना सकते है, एवं यह एक थोपा गया विषय नही लगेगा।
दरअसल वास्तविक तथ्य एवं मूल्य दो ऐसे स्तम्भ हैं जिस पर यौन शिक्षा निर्भर करती है। इसके लिए आवश्‍यक है कि शिक्षक स्वयं की यौनिकता, इससे जुड़े मूल्यों विषेषकर किशोरों की यौनिकता सम्बन्धी मूल्यों पर खुल कर चर्चा करें। यदि शिक्षक ऐसा करते है तो यह उन्हें प्रभावशाली यौन शिक्षा के पॉच सूत्रों को समझने में मदद करेगा। वह है- यौनिकता के सम्बन्ध में सकारात्मक सोच, स्वीकृति का सिद्वान्‍त वास्तविकता को स्वीकार करना, अर्न्तक्रियात्मक उपागम एवं अनिर्णायक अभिवृत्ति।
यौन शिक्षा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है केवल युवाओं के लिए ही नहीं बल्कि शिक्षकों, नीतिनिर्माताओं, प्रशिक्षकों एवं सहर्जकत्ताओं के लिए भी। अत: भली प्रकार यौन शिक्षा प्रदान करने, एवं इसके अनुश्रवण के लिए निम्न कदम महत्वपूर्ण है-
- नीति- निर्माताओं के लिए संवेदनशीलता कार्यशालाओं का आयोजन जो कि प्रक्रिया उन्मुखी हो ताकि रणनीतियों एवं नीतियों के निर्माण की प्रक्रिया में सहायता प्रदान कर सके।
- शिक्षकों एवं प्रशिक्षकों को यौनिकता पर आधारभूत प्रषिक्षण ।
- प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण।
- स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों का इन-सर्विस प्रशिक्षण

आप डॉ0 संजय सिंह को सीधे इस पते पर भी लिखे सकते हैं sanjaysinghdr@sifymail.com

1 comment:

sanatkada said...

Thanks Ravi,
Mujhey aaj hi mail main aapka bheja hua pahla blog mila padne main acha laga, main umeed karta hun ki aap aur bhi details main hamen jankari dete rahenge.

puneet goyal
janvikas
8/44, prag narain road, lucknow
puneet6791@gmail.com