Saturday, October 6, 2007

महिलाओं के मामले में हमारा समाज अभी भी आदिम युग का है

मनोज कुमार सिंह, गोरखपुर से हैं। एक मीडियाकर्मी है। आपने पूर्वांचल में भूख व गरीबी के कारण हो रही मौतों को उजागर किया, इसके साथ्-साथ महिला मुददों पर भी आप लिखते आये हैं। आप सामाजिक आन्‍दोलनों में काफी स‍क्रिय रहते हैं, चाहे वह रोजगार गारंटी हो, सूचना का अधिकार हो या महिला अधिकारों पर अभियान हो। लोकअभ्‍युदय अखबार का जेरे बहस कॉलम में रेगूलर लिखते हैं, यहां पर वे पूर्वी उ0प्र0 में लगातार बढ रही महिला हिंसा की कुछ घटनाओं का पित्रसत्‍तात्‍मक ढाचें में विश्‍लेषण कर रहे हैं।

देवरिया में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को मुम्बई ले जाकर वेश्‍यालय में बेच दिया। इस व्यक्ति ने तीस वर्ष पहले शादी की थी। पत्नी गांव रहती थी और वह गाजियाबाद में एक कारखाने में कार्य करता था। छह माह पहले वह गांव आया और पत्नी को गाजियाबाद ले गया। फिर उसे घुमाने के बहाने मुम्बई ले गया और वेश्‍यालय में बेच कर लौट आया। एक माह तक दुराचार का षिकार होती रही उसकी पत्नी मौका देखकर एक दिन भाग निकली और अपने मायके पहुंच कर आप बीती सुनाई। मामला पुलिस में गया और मुकदमा दर्ज किया गया।
गोरखपुर जनपद में एक परिवार के लोगों को जब पता चला कि उनकी जवान बेटी गांव के किसी लड़के से प्रेम करती थी तो उन्होने अपनी लड़की को जिन्दा जला दिया और बन्धे पर ले जाकर फेंक दिया। लड़की रात भर बंधे पर तड़फड़ाती चिल्लाती रही लेकिन उसकी मदद के लिये कोई नहीं आया। पह बंधे पर ही मर गई।
पूर्वांचल के ग्रामीण क्षेत्र की ये दो घटनाएं गांवो में महिला हिंसा की एक बानगी भर है। अगस्त माह में गोरखपुर जनपद में ग्रामीण क्षेत्र में महिला हिंसा की एक दर्जन घटनाएं मीडिया में आई। इनमें पिटाई, दुष्कर्म, दहेज हत्या, हत्या और अपहरण के मामले हैं। इनमें आधे से अधिक मामले महिला के साथ घर में हुई हिंसा या परिजनों के द्वारा की गई हिंसा के हैं। मीडिया में अधिकतर वहीं मामले आ पाते है जो पुलिस तक पहुंच जाते हैं। ज्यादातर मामले सामने नहीं आ पाते हैं। फिर भी जितने मामले आते है उससे समाज में महिला हिंसा की भयावह तस्वीर सामने आती है।
ये घटनाएं ये साबित करती है कि महिलाओं से व्यवहार के मामलें में हमारा समाज अभी भी कितना आदिम युग का है। कोई अपनी पत्नी को वेश्‍यालय में बेच रहा है तो कोई अपनी बेटी को इसलिए जला कर बंघे पर फेंक दे रहा है कि वह वयस्क होने के बाद भी कैसे किसी से प्रेम कर रही है। कोई अपने दामाद की इसलिए सरेबाजार कुल्हाड़ी मार कर हत्या कर देता है कि उसने उनकी बेटी से क्यो प्रेम विवाह किया। आमतौर पर ये घटनाएं समाज को विचलित भी नही करती क्योंकि उसे यह सब बहुत स्वाभाविक लगता है। देश महिला हिंसा की घटनाओं को रोक पाने में सक्षम नहीं हो पा रहे है। यह बहस का विषय हो सकता है कि हमारी कानून व्यवस्था क्यों महिला हिंसा को रोक पाने में कामयाब नहीं हो पा रही है। लेकिन महिला हिंसा का सबसे बड़ा कारण समाज का पितृसत्तात्मक होना है। पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता है और माना जाता है कि वे शाशित होने के लिए ही बनी है। उन्हे गुलाम समझा जाता है यही कारण माना जाता है कि उनकी न कोई इच्छा है न कोई विचार। शिक्षित परिवारों मे पढ़ी-लिखी महिलाओं या लडकियों को बात-बात में कह दिया जाता है तुम क्या जानों, जैसे कि जानने का हक और निर्णय लेने का हक सिर्फ पुरूषों को ही है। इस मानसिकता और सोच के रहते महिलाओ को बराबरी के दर्जे पर लाना और उनके साथ भेदभाव व हिंसा को रोक पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए इस सोच को बदलने के लिए बड़े पैमाने पर जनान्दोलन की जरूरत है। एक बड़ा जनान्दोलन ही समाज को चेतना के स्तर पर ऊंचाइयों पर ले जाता है और एक झटके से समाज को सड़ी-गली मान्यताओं , सोच व विचार से छुटकारा दिला देता है।

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